सुप्रीम कोर्ट में राफेल के दो मामलों की सुनवाई की तिथियां बदलीं, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई हुए हैरान


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में राफेल से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सोमवार को कहा कि वह हैरान हैं कि इससे जुड़े मामलों की तिथियां कैसे बदल गईं. सीजेआई का एतराज इस बात पर था कि राफेल पर पूर्व में आए फैसले की समीक्षा के लिए दाखिल पुनर्विचार याचिका और राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई को लेकर अलग-अलग तिथियां कैसे लग गईं. जबकि पूर्व में बेंच ने स्पष्ट कहा था कि दोनों मामलों की सुनवाई एक ही तिथि पर की जाएगी.प्रशांत भूषण की ओर से राफेल मामले में दाखिल रिव्यू याचिका सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से जुड़ी है,


जिसमें फ्रेंच एविएशन फर्म दसॉल्ट के साथ 36 राफेल विमान सौदे की मंजूरी से जुड़े फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की गई है, वहीं अवमानना मामला, राहुल गांधी से जुड़ा है. दरअसल, राहुल गांधी ने एक चुनावी रैली में गलत दावे करते हुए सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कह दिया था कि शीर्ष अदालत ने भी कहा है कि चौकीदार चोर है. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ऐसा कुछ नहीं कहा था. राहुल गांधी के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट उन्हें नोटिस दे चुका है.


दरअसल, 30 अप्रैल को, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने केस की सुनवाई के दौरान ओपेन कोर्ट में कहा था कि राफेल ऑर्ड की समीक्षा और अवमानना से जुड़ी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होगी. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस आदेश की एक कॉपी भी पब्लिश हुई, जिसमें सोमवार को रिव्यू पिटीशन पर बात कही गई. जबकि राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख का उल्लेख किया गया, यह तारीख समर वैकेशन शुरू होने से एक दिन पहले की रही.


जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने भी अब 10 मई को दोपहर दो बजे सुनवाई के लिए दोनों मामलों को सूचीबद्ध किया है. बहरहाल, सोमवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने बेंच को बताया कि वह रिव्यू याचिका के पक्ष में बहस करने के लिए तैयार हैं.उन्होंने यह भी कहा कि उनके सह याचिकाकर्ता अरुण शौरी को एक अलग आवेदन के लिए अपनी दलीलें पेश करने की अनुमति दी जाए जो अज्ञात सरकारी सेवकों के लिए दंड की मांग करते हैं,


जिन्होंने कथित रूप से राफेल मामले की पिछली सुनवाई के दौरान अदालत को गुमराह किया था. बता दें कि 14 दिसंबर 2018 को अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने माना था कि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू जेट विमानों की खरीद में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह का कोई कारण नहीं बनता और कथित अनियमितताओं की जांच की मांग करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया.यह भी कहा कि इस बात का कोई पुख्ता सुबूत नहीं है कि मामले में किसी निजी संस्था को फायदा पहुंचाया गया.